भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ममतामयी ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पलकें चूमूँ
तुम्हें गले लगाऊँ
जीवन पाऊँ।
2
क्षितिज पार
केवल इंतज़ार
धरा- गगन।
3
महामिलन
सृष्टि झूमे खुशी से
मादक मन।
4
ममतामयी !
तुझसे रस पाया
जीना सिखाया।
5
तुम न होते
रस मर ही जाता
कौन लुभाता।
6
रस छलके
तेरे नयनों से जो
मुझे सींचता।
7
वाणी का जादू
बनके आलिंगन
मुझे है बाँधे।
8
अधर -प्यास
बनके मधुमास
मुझे टेरती।
9
हो जाऊँ लय
तुम में एक दिन
वही है मुक्ति।
10
कहीं न जाऊँ
छुप तेरे सीने में
स्वर्ग पा जाऊँ।
-०-