Last modified on 13 नवम्बर 2018, at 07:45

छलके शब्द / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:45, 13 नवम्बर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1
व्याकुल जीव
कहाँ जाए क्या करे?
सूझे न बाट।
2
गुफ़ा के द्वारे
बाघ बैठा घूरता
राही आक्रांत ।
3
खौलता पानी
कैसी यह नदिया
तट भी दूर।
4
प्राण-सौरभ
दुआ बन तुम्हारा
मुझे छू गया
5
दुर्गम पथ
साथ मिले तुम्हारा
सुमन खिलें ।
6
गुलाबी पात
पतझर ले आया
यौवन रूप।
7
मधुर वाणी
दिए घाव हज़ार
अबकी बार।
8
मेघों ने छानी
हो गई रुपहली
धूप सुहानी।
9
छलके शब्द
बही अमृत धारा
रूप तुम्हारा।
10
तुम हो धरा
मैं नभ तुम्हारा
अंक में ले लो।