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जो भी है चलता जाता है / संदीप द्विवेदी
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क्यों पीट रहा सर उस चौखट पर
जिसे समय की सीमा लाँघ गयी
रुकना है रुक पर याद रहे
ठहरेगा कोई साथ नही
जिस राह निकल कर गया समय
वो राह कहाँ दोहराता है
जो आज है कल क्या होगा
ये वही समय बतलाता है
जो भी है चलता जाता है
क्यों कहू कि उड़ता वो पंछी
बस तिनके लेकर जाता है
मै तो कहता वह रोज सुबह
सूरज से मिलकर आता है
उन्नति का कारोबार सदा
सपनो के दम पर चलता है
बीज लगे जैसा दिल पर
फल वैसा लगता जाता है ..
जो भी है चलता जाता है