भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

औरत / निर्मला सिंह

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:17, 19 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=निर्मला सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसमें एक नहीं
चारों दिशाएँ हैं
जब उठती है
तब पूरब,
जब सोती है
तब पश्चिम,
दिन भर खटती चलती है,
उत्तर और दक्षिण-सी,
सृष्टि के इस छोर से
उस छोर तक,
वह और कोई नहीं
तुम्हारी माँ है,
बहिन है,
पत्नी है।