Last modified on 25 दिसम्बर 2018, at 20:17

एक रात की कहानी / फ़हमीदा रियाज़

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:17, 25 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़हमीदा रियाज़ |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बड़ी सुहानी-सी रात थी वो
हवा में अनजानी खोई-खोई महक रची थी
बहार की ख़ुशगवार हिद्दत से रात गुलनार हो रही थी
रुपहले सपने से आसमाँ पर सहाब बन कर बिखर गए थे

और ऐसी इक रात एक आँगन में कोई लड़की खड़ी हुई थी
ख़मोश तन्हा
वो अपनी नाज़ुक हसीन सोचों के शहर में खो के रह गई थी
धनक के सब रंग उस की आँखों में भर गए थे
वो ऐसी ही रात थी कि राहों में उस की मोती बिखर गए थे

हज़ार अछूते कुँवारे सपने
नज़र में उस की चमक रहे थे
शरीर-सी रात उस को चुपके से वो कहानी सुना रही थी
कि आज
वो अपनी चूड़ियों की खनक से शरमाई जा रही थी