भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विज्ञान / सुरेन्द्र स्निग्ध

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:19, 25 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र स्निग्ध |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसने कहा था तुम बन जाओ लेखक
साला, लेखक-फेखक बनने चले हो
फटने लगी न तुम्हारी वो
अरे, घूस-फूस कमाते
अपने भी खाते --
सामाजिक न्याय के खाते में भी डालते
कर दिया न,
उस साले लौंडे प्रोफ़ेसर ने
तुम्हारे ’उसमें‘ बाँस,

क्या लिखते हो
जरा बताओ तो
सुना है क्या तो लिखे हो
कौन तो आँख ?
क्या लिख रहे हो आँख-पाँख
कलम में दम है तो
लिखो, मुख्यमन्त्री जी की जीवनी
मेरा भी जोड़ दो नाम
जोड़ दो --
कि मेरे इशारे के बिना
मुख्यमन्त्री जी बाथरूम भी नहीं जाते !

लिख दिया है हुजूर,
ये देखिए, लिख दिया है,
आठवें क्लास के कोर्स की किताब में
लगा दी गई है आपकी कहानी ।
कहानी नहीं है हुजूर,
कहानी की शक्ल में ही है कुछ
लाखों-लाख बच्चे पढ़ेंगे
सर, आपके रूप में अपने को गढ़ेंगे ।

सर, वो जो सुखबचन राय हैं न
वही हैं इसके एडिटर !
-- कौन, कौन सुखबचना --

वही न -- जिसने किया है रचपूतनी से ब्याह,
अपने को कभी कहता है यादव
कभी कुर्मी, कभी कहार
बड़ा फ्राड है, साला,
हिन्दी का आदमी है न --
बड़ा फ्राड होता है हिन्दी वाला,
उसमें भी अगर वह लेखक-फेखक हो
साले ने अँग्रेज़ी के पक्ष में नहीं दिया है बयान !

कहते थे न --
हिन्दी में, साला, कोई होता ही नहीं है विद्वान
अगर विद्वान ही रहते
कुमार सकल -- तो घण्टों खड़े रहते
नीचे --
और चिरौरी करते कि बना दीजिए
फलाँ बोर्ड का चेयरमैन !
हम कहते हैं न कि लेखक-फेखक मत बनो --
वैसे मुख्यमन्त्री की कहानी लिखकर
तुमने बहुत अच्छा काम किया है
कहानी-पिहानी तुम, लिखना कभी
कुर्मी कहार हो
मैथमेटिक्स के हो -- उसी के रहो
और चार-पाँच साल तक राज करो
माल जुटाने का सिरिफ़ काज करो ।