Last modified on 26 दिसम्बर 2018, at 12:02

खेला करती थी बगिया में / रामेश्वरीदेवी मिश्र ‘चकोरी’

Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 26 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वरीदेवी मिश्र |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खेला करती थी बगिया में, फूलों और तितलियों से।
बातें करती रहती थी अक्सर उन अस्फुट कलियों से।
कितना परिचय था घनिष्ठ नरही की प्यारी गलियों सें।

किन्तु लगा चस्का पढ़ने का, कुछ दिन बाद मुझे प्यारा।
मिली साथिनें नयी-नयी वह नूतन जीवन था प्यारा।
मेरे लिए विनोद-भवन महिला-विद्यालय था सारा॥

महिला-विद्यालय को छोड़ा, नरही की गलियाँ छोड़ीं।
बगिया-सी विभूत छोड़ी, हँसती प्यारी कलियाँ छोड़ीं।
साथ खेलोवाली वे बचपन की प्रिय सखियाँ छोड़ीं॥

वे अतीत की स्मृतियाँ आकर, हाहाकार मचाती हैं।
अन्तरतम में एक मधुर-सी, पीड़ा ये उपजाती हैं॥