भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अदृश्य चित्र / रामेश्वरीदेवी मिश्र ‘चकोरी’

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:49, 29 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वरीदेवी मिश्र |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अरे चितेरे! किस भविष्य का तूने चित्र बनाया?
बता, बता, किसके मानस का है यह भाव चुराया?

शैशव के भोलेपन-सी, नवयौवन की आँधी सी-
अरे बता, किसके अदृष्ट की यह अजान प्रतिछाया?

क्या भविष्य इतना उज्ज्वल है, बोल अरे मतवाले!
क्या न इसे भी ढक सकते हैं बादल काले-काले?
अभी बिहँसती है प्राची में जो यह स्वर्णिण रेखा॥
आती होगी निशा-तिमिर के भीषण तीर सँभाले॥

अरे प्रवंचक! अब न पिला इस मादकता की हाला॥
अरे देखने दे भविष्य का केवल अमिट उजाला।
हाय, तनिक तो सोच कि जग का नित्य नियम है कैसा!
सुख की गोदी में ही तो पलती जीवन की ज्वाला॥

संसृति के झूठे सपनों में मन की ममता भूली-
अरे चितेरे! अब न फेर इस पट पर अपनी तूली!