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जय शस्य श्यामले जन्मभूमि / राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’

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जय शस्य श्यामले जन्मभूमि।
जय वीर प्रसविनी मातृभूमि॥
हिम शैल सुभग तेरा किरीट, मृदु मंजु वसन दूर्वा हरीट।
सुरसरि की पावन धवल उर्म्मि, लेती है तब श्रीचरण चूमि॥
करता सुधांशु अमृतवर्षण, धोता रत्नाकर चारु चरण।
करता है आलोकित दिनकर, करते तब सुरभित पुड्ढ निकर॥
तेरी महिमा है अद्वितीय, गौरव गरिमा है अकथनीय।
जय जयति जयति हे दिव्य भूमि, जय जय जग पावन वीर भूमि॥
तेरी सुषमा है अनुपमेय है प्राप्त तुझे उच्चता श्रेय॥
जय कला-पंुज हे सौख्य-भूमि।
जय वीरवरों की कर्म-भूमि॥
उनकी आकांक्षा है कि-
माँ के मृदुल चरण-कमलों में, अर्पण कर दूँ जीवन-फूल।
सदा चढ़ाऊँ निज मस्तक पर, माँ के पद-पद्मों की धूल॥
नित्य रहे उसका ही चिंतन, करूँ सतत उसका सम्मान।
सहूँ दुखद आघात हर्ष से, कभी न विचलित होवें प्राण॥

जननी-जन्मभूमि के हित मैं हो जाउऊँ सहर्ष बलिदान।
बनकर वीर बालिका मैं भी कर दूँ भारत का उत्थान॥
वीणा की प्रतिध्वनि में मिलाकर गाऊँ माँ का गौरव-गान।
रहूँ मातृ-सेवा में तन्मय, चाहे संकट पड़े महान॥

भारत के उपवन की कलियों में मिलकर मैं खिल जाऊँ।
मातृभूमि-रज के कण-कण में हे भगवन् मैं मिल जाऊँ॥
देश-प्रेम का भव्य भाव मेरे मन में विकसित होवे।
मातृभूमि की भक्ति हृदय में मेरे नाथ! उदित होवे॥