भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्रमिक दिवस पर / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:35, 16 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इनको साधन होता कोई
तो ये भी मंत्री बन जाते
 जिनकी फुट पर ठठरी सोई।

यदि गला काट की क्रूर कला
आती इनको भी कहीं भला
तो इन अलमस्त कबीरों की
रानी बनती धनियालोई।
इनको साधन होता कोई॥

चोरी का सुधरा दाँवपेंच
आता यदि करते खूब ब्लेक
तो तुंदियल लखपति बन जाते
संग में रहती सुन्दरि कोई।
इनको साधन होता कोई॥

यदि भवन कोई इनका होता
तो 'झाँखे' में क्या नर सोता?
शिक्षा की सुविधा होती यदि
मिलती इनकी इज्जत खोई।
इनको साधन होता कोई॥

पार्कों से ले फुटपाथों पर
नदियों के औघट घाटों पर
मुर्दों से क्यों सोते रहते?
रहती कैसे किस्मत सोई?
इनको साधन होता कोई॥

सरकार ध्यान दे यदि इन पर
तो दूब जमेगी पत्थर पर
अंबर भी चकित निहारेगा
जब तिरे शिला इनकी छूई।
इनको साधन होता कोई॥

इनमें जब ज्ञानप्रभा फूटे
देवता तुष्ट हों सब रूठे
आकाश चढ़ेंगे ये निश्चय
जैसे उड़कर चढ़ती रूई।
इनको साधन होता कोई॥

जो कुछ जीवन में गलासड़ा
उसके प्रति सब में जगे घृणा
निश्चय मानवता प्रगटेगी
चंदनचर्चित, उज्ज्वल धोई।
इनको साधन होता कोई॥