पूँजी के काले खातों में
महज़ आँकड़े भर हैं
हम सब
पूँजी हमें बदल सकती है
कम या ज़्यादा कर सकती है
शून्य गुणा कर अपने हल में
हमें मिटा सकती है पल में
इसका बुरा क़र्ज़ भरने को
बढ़ते जाते कर हैं
हम सब
भाँति भाँति के खेल दिखाकर
पूँजी का दिल बहलाते हैं
गाली, पत्थर, डंडा, गोली,
जाने क्या-क्या सह जाते हैं
चेहरे पर मुस्कान सजाये
सर्कस के जोकर हैं
हम सब
नींद न टूटे पूँजीपति की
सोच यही हम डरते रहते
बहरी पूँजी के कानों में
भिन-भिन-भिन-भिन करते रहते
ख़ुशबू पर मर मिटने वाले
नाली के मच्छर हैं
हम सब