Last modified on 21 जनवरी 2019, at 10:11

भीड़ भरे इस चौराहे पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:11, 21 जनवरी 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भीड़ भरे इस चौराहे पर
आज अचानक उसका मिलना
जैसे इंटरनेट पर यूँ ही
मिले पाठ्य पुस्तक की रचना

यूँ तो मेरे प्रश्नपत्र में
यह रचना भी आई थी
पर
इसके हल से कभी न मिलते
मुझको वे मनचाहे नंबर

सुंदर, सरल, कमाऊ भी था
तुलसी बाबा को हल करना

रचना थी ये मुक्तिबोध की
छोड़ गया पर भूल न पाया
आखिर इस चौराहे पर आकर
मैं इससे फिर टकराया

आई होती तभी समझ में
आज न घटती ये दुर्घटना