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वक़्त भी सजदा करता है / हस्तीमल 'हस्ती'
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:02, 26 जनवरी 2019 का अवतरण
वक़्त भी सजदा करता है
सच का कितना रुतबा है
ये दरिया जो सूखा है
अपने भीतर डूबा है
नींव नहीं ढहती है कभी
कलश, कंगूरा ढहता है
फूँक से आग भड़कती है
मगर दिया बुझ जाता है
मंदिर पर भी पहरे हैं
ईश्वर किससे डरता है
जब भी काँटे चुभते हैं
'हस्ती' मन में हँसता है