Last modified on 26 जनवरी 2019, at 07:10

अच्छे-अच्छे बचते हैं / हस्तीमल 'हस्ती'

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:10, 26 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' |संग्रह=प्यार का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अच्छे-अच्छे बचते हैं
सच को दार समझते हैं

तुमसे तो काँटे अच्छे
सीधे-सीधे चुभते हैं

फूलों की दूकानों के
पत्थर तक भी महकते हैं

सबके बस का रोग़ नहीं
जिसे फ़कीरी कहते हैं

फूल महकने वाले तो
खिलते-खिलते खिलते हैं