Last modified on 4 फ़रवरी 2019, at 01:30

माँ ने कहा हुआ क्या तुझको / रामकुमार कृषक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:30, 4 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार कृषक |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

माँ ने कहा — हुआ क्या तुझको कैसे सूखा है ,
रजधानी में रहकर भी क्या रहता भूखा है ?

कमा रहा किसकी ख़ातिर कुछ खाया कर बेटा ,
घर-आँगन तक भुला दिया घर आया कर बेटा !

बहन देखती रही कपोती-सी भैया मुख को
पता नहीं कितने दुखड़े हैं भैया मनसुख को !

भाई खेतों से लौटे तो कुछ दाएँ-बाएँ
कितने झगड़े-झंझट जी को कैसे बतलाएँ ?

भीतर भौजाई चूल्हे पर चढ़ी उबलती है
आटे के बदले हाथों को रह-रह मलती है !

घरवन्तन उसकी आँगन में ग़ुमसुम खड़ी हुई
दुनिया-भर की तंगिस ऊपर मन्नो बड़ी हुई !

उसने देखा, तभी उछलता बस्ता घर आया
तख़्ती-बुदका फेंक गोद में चढ़कर तुतलाया,

"ओ मेली बन्दूत ओल पिच्छोल तहाँ लाओ
अम बन्दूत तलाएँदे दादी तो छमजाओ !"

फिर भूला बन्दूक चला आया फिर चूका है
उसको खाती भूख भूख का शेरू भूखा है !

माँ ने कहा — हुआ क्या तुझको .....