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नाविक! नाव चलाता चल रे / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

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नाविक! नाव चलाता चल रे!
पथिक!विजय को गा पल-पल रे!

लहराती लहरें दीवानी,
नभ में छाई घटा तूफानी,
बहे नयन से झर-झर पानी,
मत सोचो क्या होगा चलकर,

क्या होगा इठलाता चल रे!
नाविक! नाव चलाता चल रे!

लहरों में गाता है यौवन,
यौवन से आता है जीवन,
क्यों घबराता नाविक का मन?
मस्त वही जो संकट झेले,

कहता सरिता का कल-कल रे! नाविक नाव चलाता चल रे!

बढ़ चल अपनी तरी बढ़ाएं,
बढ़ो कहर में कसक छुपाए,
जग हँस दे या प्लावन आए, पंथी पाँव बढ़ाते जाना,

होता है नाविक में बल रे! नाविक! नाव चलाता चल रे!

जग में हैं पग-पग पर रोड़े, पथिक नहीं जो पथ को छोड़े,
प्रगति पंथ से पैर न मोड़े, सिखला दो अलसाए जन को,

साहस जीवन का मंगल रे! नाविक!नाव चलाता चल रे!

करो प्यार नाविक प्लावन से, चल कर कह दे आज मरण से,
साहस हो तो आंँख मिला लें, नश्वर तन का प्यार महाभ्रम,

मस्ती लेकर गाता चल रे! नाविक नाव चलाता चल रे!