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परिभाषा से परे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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मेरे तुम क्या ?
अपरिभाषित ही
रहे सदा से
अनुराग रचा जो
जुड़ा है नाता
समा नहीं पाता वो,
तुमको पाया
ऊपर सदा उनसे।
केवल प्रेम
अंतर्धारा तुम्हारी
छू उर -तट
अनवरत बहे
यही कहती-
जन्म -जन्मान्तर से
विधि ने रचा,
जो सम्बन्ध हमारा
परिभाषा से परे।