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अवसादी मन! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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सुन रे ओ अवसादी मन!
बहुत नहीं तेरा जीवन ।
हिम गलेगा निश्चय मानो,
मौन भी टूटेगा,
असंवादी जीवन का पहरा
कभी तो छूटेगा।
चुप्पी का है
कोहरा छाया
कुछ नहीं सूझे
मन भरमाया ।
आशा का मन में ये उजाला
किरनें बन फूटेगा।
हिम गलेगा निश्चय मानो,
मौन भी रूठेगा ।