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अन्तर्दाह / पृष्ठ 18 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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उसका मादक था जीवन
उसका मादक था यौवन
उसकी असीम मृदुता में
डूबा था मेरा तन -मन ।।८६।।

सुन्दरता के सागर में
नहलाई - सी काया थी
चन्द्रमा और चपला से
बढ़कर उज्ज्वल छाया थी ।।८७।।

मैं था कठोर पाहन सा
वह प्रेम- पीयूष की धारा
बनकर थी बही हृदय से
भींगा था जीवन सारा ।।८८।।

मलयानिल - सी थी शीतल
कोमल थी छुई-मुई - सी
दुख-तम में चान्द्रमसी-सी
परिचय में दिवस कुई-सी ।।८९।।

चिर आकांक्षा - सी जागी
क्षण तृप्ति सदृश थी सोई
कुसमय के उस परिचय में
अभिशाप छिपा था कोई ।।९०।।