भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काल-चक्र / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:38, 1 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर }}...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निर्मम है

काल-चक्र

अतिशय निर्मम !

जिसके नीचे

जड़-जंगम

क्रमशः पिसता और बदलता

हर क्षण, हर पल !

थर-थर कँपता भू-मंडल !


अदृश्य

निःशब्द किये

अविरत घूम रहा

यह काल-चक्र

निर्विघ्न ... निर्विकार !


इसके सम्मुख

स्थिरता का कोई

अस्तित्व नहीं,

इसकी गति से

सतत नियन्त्रित

जीवन और मरण,

धरती और गगन !