भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय / संजय शाण्डिल्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 17 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय शाण्डिल्य |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन
बात-बात में
तुमसे कहा था मैंने
कि जब से हम साथ हैं
मैंने कुछ भी नहीं लिखा है
मेरे जेहन में
कविता नहीं आती

तुमने उस दिन
मेरा हाथ थामकर कहा था
आएगा समय लिखने का
एक दिन सब दुरुस्त हो जाएगा

आज
इतने वर्षों बाद
वाक़ई
सब दुरुस्त हो गया है

अब तुम
मेरे साथ नहीं हो

मेरे साथ
अब रहता है
समय का अपार अन्धकार
जिसमें मैं लिखता हूँ
जिससे मैं लिखता हूँ ।