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अन्तर्दाह / पृष्ठ 30 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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ईषत् चालित नयनों का
इंगितमय वह स्पंदन
उर - पुर में जगा रहा है
करुणा का भारी क्रंदन ।।१४६।।

चंचले! चपल चपला -सी
चमको इस नीलाम्बर में
चिर सघन पयोद हटाकर
आ जा जीवन - संगर में ।।१४७।।

शरदेन्दु सान्द्र - सी चमको
मेरी दरिद्र धरणी पर
कलरव से अब गा दो ना
अपनी प्रतीप करणी पर ।।१४८।।

शतदल के विकच वनों में
निर्झर के सुखद स्वरों में
खोजूँगा चिह्न तुम्हारा
तारों के नील घरों में ।।१४९।।

भ्रमरी की मृदु गूँजों में
फूलों की मृदु लाली में
खोजूँगा चिह्न तुम्हारा
फसलों की हरियाली में ।।१५०।।