Last modified on 26 फ़रवरी 2019, at 11:54

गीत के गीत / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:54, 26 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदेव शर्मा 'पथिक' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गीत-जिसमें सो रही तड़पन किसी की।
गीत-अन्तरवीण की धड़कन सिसकती।

प्राण की यह आह वाली रागिनी है,
गीत का अन्तर छिपाये नागिनी है,
गीत मलयानिल मगर अंगार भी है,
गीत में सोया किसी का प्यार भी है,

गीत है कोमल कहानी ख़ुदकुशी की।
गीत-जिसमें सो रही तड़पन किसी की।

गीत मीरा की ज़वानी की जलन है,
गीत दो प्रेमी उरों की मधु-तपन है,
गीत की कड़ियाँ जगातीं जागरण को,
दूर कोई गीत गा कहता मरण को-

गीत तुम हो मौत की बेला बिलखती।
गीत-जिसमें सो रही तड़पन किसी की।

मुरलियों के छिद्र से जब गान निकले,
आह! कितनी राधिका के प्राण निकले,
गीत हैं लघु मंत्र जीवन के-मरण के,
प्रीत की मिट्टी मिली बस, गीत पनपे,

गीत हैं आवाज़ मधुमय उर्वशी की।
गीत जिसमें सो रही तड़पन किसी की।

प्रणय के दो गान सावन को बुलाते,
प्राणधन की नीन्द पलकों से चुराते,
एक मधु संगीत से जीवन सरस है,
गीत लैला के हृदय की मृदु कसम है,

जागरण की तान नव निर्माण करती।
गीत-जिसमें सो रही तड़पन किसी की।

गीत लू, अंगार है तो आह भी है,
गीत लपटों में सुलगकर छाँह भी है,
गीत ने पाषण भी पिघला दिये हैं,
मंज़िलों के रास्ते बतला दिये हैं।

मंजु आशा गीतमय होकर थिरकती।
गीत-जिसमें सो रही तड़पन किसी की।

मरघटों में गीत जीवन को जगाते,
राधिका को पुनः यमुना तट बुलाते,
गीत के ओ गीत! खोलो द्वार मन के,
उठ चलो शीतल-सुशीतल ज्वार मन के,

विश्व-प्राणों पर मचल सिहरन इसी की।
गीत-जिसमें सो रही तड़पन किसी की।