भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मत करो अलगाव / ओम नीरव

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:22, 26 फ़रवरी 2019 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नायकों! हम बालकों से मत करो अलगाव!
याद हम आगत करेंगे विगत का सद्भाव!

हम शिराओं के रुधिर तुम-
रुधिर के संचार,
प्राण हम-तुम देश के यह-
देश अपना प्यार ।
प्यार से भर दें सर्जन का बूँद-बूँद तलाव!

कुछ तपन से, कुछ जलन से
जगमगाती ज्योति,
फिर वही तम-तोम में पथ-
को दिखाती ज्योति ।
ज्योति की तुम वर्तिका, हम स्नेह सिंचित स्राव!

जायँगे, ले जायँगे भारत
भँवर के पार,
चाहिए नन्हे पगों को
कुछ दिशा, कुछ प्यार ।
हम बने पतवार युग की, तुम हमारी नाव!

वक्ष पर हमको सजा लो
हम महकते फूल,
फूल से लगने लगेंगे
पंथ के सब शूल ।
नेह से 'नीरव' भरें हम, मातृ-भू के घाव!
नायकों! हम बालकों से मत करो अलगाव!