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साधो, बगिया भई उदास / सुशील सिद्धार्थ
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साधो, बगिया भई उदास।
बिरवा कटिगे छांह भिंजरिगै पंछिन का बनबास॥
कहां तिलोरी सुंघनी मुन्नर चेंगरी और कटनास।
पट्टे पडुखी मैना बुलबुल भिंजरी सबकी आस॥
जंघा गिरिगे जिनकी पुलुई छुवति रहै अकास।
जरैं उलहि कै परीं अकेले कउनौ आस न पास॥
उल्लर बिल्लर भूमि परी है जामि रहे कुस कांस।
गै ढहाय वा कच्ची कुइयां जेहिमा रहै मिठास॥
पानी पर भगमच्छरु मचिगा सांसैं भई निरास।
सागरु केत्ता गहिरा होई जेत्ती गहिरि पियास॥