भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मंगल-गीत / उमेश बहादुरपुरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:54, 1 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मंगल दिन हे माता के सब मिल के गाबऽ रे।
मंगल दिन हे दाता के सब खिलके गाबऽ रे।।
नाचऽ गाबऽ खुसी मनाबऽ गम के कउनो बात न´्।
मइया के दर अइलऽ हें एकरा से बड़ सौगात न´्
मंगल दिन नवराता के सब नचके गाबऽ रे।।
आँधी-तुफाँ अइतै न´् न´् छइतै कारी-बदरिया।
सुन लऽ मइया के जयकारा से गूँजऽ हे नगरिया।
मंगल-दिन जगराता के सब हिल-मिल गाबऽ रे।।
सुख में रहबै दुख में रहबै मइया के दर अइबै।
जो कुछ भी हो जाये भइया हम तो मइया के गइबै।
मंगल दिन जग-माता के सब उछल के गाबऽ रे।।