भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाबा कहिया बरसैबा / उमेश बहादुरपुरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:56, 1 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखऽ सावन में जरऽ हे शरीर।
ओ भोला बाबा कहिया बरसैबा तूँ नीर।
कहिया बरसैबा तूँ नीर ओ बाबा।
सूख गेलै तालअउ सूख गेलै तलैया।
हाय-राम कइसन अयलइ समइया।
बहे चाहे पछिया या बहे पुरबइया।
सुख्लन नदी में कइसे चलतइ नइया।
के हरतइ गरीबा के पीर। ओ भोला बाबा ...
रिमझिम फुहार ले तरसऽ हे अँखिया।
झूला पर बइठ के निहारऽ हे सखिया।
गरजऽ हे ऊपर जब काली रे बदरिया।
ढोलक झाँझ से गूँजऽ हे नगरिया।
पुकारऽ हे राजा-फकीर। ओ भोला बाबा ...