भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कूकुर एसी मा जुड़ात बा / सन्नी गुप्ता 'मदन'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:13, 2 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सन्नी गुप्ता 'मदन' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बूढ़ पुरनिया रहै दुवारे
कूकुर एसी मा जुड़ात बा।
भूखै सास ससुर सोवत है
कूकुर रोटी दूध खात बा।
बेटवक बुढ़ऊ मरि-मरि सेइन
देइहै हमका मरत कै लकड़ी।
जब जब गिरब फिसल कै कबहू
तब हमका ई बेटवा पकड़ी।
धीरे-धीरे मनई कै मानवता दिन पै दिन हेरात बा
मेहरारू कै लूँगा लाये
बिस्कुट कुकुरे का पकराइन।
माई के खाँसी कै सीरफ
चार दिने मा फिरूँ भुलाइन।
लडक्या ताई लाये पिज़्ज़ा
बाबू कै कुरता खियान बा।
बूढ़ पुरनिया कै लड़केंन के
मन मा नाही तनिक ध्यान बा।
लोक,लाज,मर्यादा,इज़्ज़त मनई मा आवत लजात बा।
घर मा रोज पतोहिया डाँटे
बेटवा भी अलगे रोबान बा।
ऊब गए अब माई-दादा
बेमतलब अब बची जान बा।
सोचे रहे बुढौती आए
बैठ मज़े से जीवन जीयब।
पोती-पोता के साथे में
सुरुक-सुरुक कै सुख का पीयब।
कौन अर्थ कै बाटै हमरे बेटवा केतनो भी कमात बा