भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नई बहुरिया / सन्नी गुप्ता 'मदन'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 2 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सन्नी गुप्ता 'मदन' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाँव भरे मा पिटा ढ़िढोरा
सोहर गावै शुरू भवा
सबै बाराती लगे सियावै
कुरता-धोती नवा-नवा
बेटवक बापेक हाल न पूछा
बनकै आज जहाज उड़ै
तनी देर रुक जात्या भैवा
यतना कहि कै भाग पड़ै
खूब मिले यहि बार दहेजा सोच बुढ़ौतिम फुर्ती छाई
पूरे घर मा ख़ुशी आय जब नयी बहुरिया घर मा आई।।
जैसै-तैसे व्याह भई तौ
सबै ख़ुशी से उछल पड़े
सुंदर सुघर बहुरिया पाके
बात-बात पै हवस लड़ै
खुब इज़्ज़त बाटै पतोह कै
चूल्हा चक्की बर्तन माजै
दौड़-दौड़ पूरे घर भर कै
कपड़ा लत्ता बिस्तर साजै
ऑर्डर पै आर्डर दै-दै कै काम करावै जैस कसाई।
पूरे घर मा ख़ुशी आय जब नयी बहुरिया घर मा आई।
बिटिया से चाची माई भै
जाने केतना रिश्ता पाई
छोड़ के नैहर चली आय जब
छूट गइन भाई भौजाई
केसे कहै उ दिल कै पीड़ा
ननद साँस सब आँख दिखावै
धीरे-धीरे जात जात दिन
बहू केहू के मन ना भावै
धीरे-धीरे बढ़ै लाग अब घर के दालिम रोज खटाई।
पूरे घर मा ख़ुशी आय जब नयी बहुरिया घर मा आई।।
ख़ुशी भरी नैहर कै जीवन
राजकुमारी से भै दासी
कभौ-कभौ ई पेट के खातिर
खाई लेत बासी तेवासी
केहू कहै एका कुलक्षिनी
केहू कहत बा सत्यानाशी
बस दहेज़ कै ख़ुशी रही
सबके मूड़ी पै भाय छमासी
बिटिया पैदा किहे बा दुइ ठी अबही बनी न बेटवक माई
पूरे घर मा ख़ुशी आय जब नयी बहुरिया घर मा आई।