Last modified on 2 मार्च 2019, at 22:18

आज समझौता होइ गै / सन्नी गुप्ता 'मदन'

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:18, 2 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सन्नी गुप्ता 'मदन' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मारा गै हरिया बेचारा
छप्पर छान्ही टूट गवा।
नयी रखाये रहा दुवारे
हौदी गोरुक फूट गवा।।
घर कै फोरिन बर्तन गगरी
और मोहारा फोर दिहिन।
बूढ़े बापेक जात-जात सब
मारि कै गोड़वो तोर दिहिन।।
मार दिहिन एक भाई ऊ इकलौता होइ गै।
कलिहै भवा बवाल आज समझौता होइ गै।।
जौ तू जाय रिपोट लिखैबा
जीयब हम दुश्वार करब।
बचा बाय ज़िंदा जे तोहरे
अबकी वहपै वार करब।।
फूंक देब हम बची जौन बा
खाय बिना तू मरि जाबा।
बाबू साहब हई गाँव कै
कबले हमसे बचि जाबा।।
हरिया बना सुपाड़ी गाँव सरौता होइ गै।
कलिहै भवा बवाल..........
जेही आय सब हरियक डाटिस
बना नाय क्यों आज सहारा।
न गरीब कै ऊपर वाला
सोच-सोच रोवै बेचारा।।
नेता पुलिस वही कै सुनिहै
जे क्यों यनकै थैली पाटै।
सबै कहै गलती तोहरै बा
केहू न वकरे दुःख का बाटै।।
बिन पेनी कै हरिया आज कठौता होइ गै।
कालिहै भवा बवाल.......