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संगम के तीरे / सन्नी गुप्ता 'मदन'

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चला हो चली भाय संगम के तीरे,
जहाँ ज़ात बाटे सबै भीड़ चीरे।
न फिर हेर पइबा अगर छूटि जाबा,
रह्या साथे चिंटू बहुत मार खाबा।

केहू रोड पकरे केहू मेड़ दाबे,
कहै बूढ़ा माइ हमू दौड़ि जाबे।
औ भौजी के बाटे हो हालत निराली,
सुबहिये से पीटत हई आज थाली।
औ नौके गदेलै तो खुब फनफनाये,
औ दादौ भी मोछिया पे डाई रंगाये।
उ नौकि पतोहियो के बोली बा फूटा,
निकारे बा धोती बना खूब बूटा।
औ रतियै से बान्हत हई साँस गठरी,
हे माई! तनी बान्ह लेती ई मठरी।
रखा सोच के कुल जो कुछ भूल जाबू,
तो सुन ला उहा पे तू बहुतै ठगाबू।
चला वहि नातिनियो के मूड़न कराइब,
जो फिर होई नाती तो चुनरी चढ़ाइब।
तू चूल्हा पोतारु तू खाना बनाऊ,
भिनहियै-भिनहियै न केउ मनमनाऊ।
उठाई के गठरी तू गाड़ी निहार्या,
औ मेला म ज्यादा न शेखी बघार्या।

जहाँ बाय खेला तमाशा के मेला,
चला देखि आई हो संगम के मेला।

अगोरत-अगोरत मिली एक गाड़ी,
केहू बान्हे पतकी केहू बान्हे हाड़ी।
पतोहियो के ओहमा तो कैसो चढ़ाये,
बड़े मुश्किलन से तो सबका घुसाये।
तबौ बाद मा हम बनरवन सा लटके,
औ ठण्डी म लागै अबै भाय टपके।
तबौ कुल मेहरियै मिल गाना सुनाई,
हमू पहुँचै खातिर मनौती मनाई।
यही बीच रामू के नाती बा रोवत,
औ नौकी पतोहिया के उलटी बा होवत।
केहू गंगा माई के नारा लगावै,
केहू फ़िल्मी गाना पे देहिया हिलावै।
दिखै लाग बैनर बा संगम मा स्वागत,
हमै लागै जैसे थकनियाँ बा भागत।
बड़े जोर से हमहूँ नारा लगाये,
बड़े भाग से माई हम तोहके पाये।

जहाँ बाय खेला तमाशा के मेला।
चला देखि आई हो संगम के मेला।

इधर बाय लंगर उधर बाय पानी,
यही से शुरू बाय मेलक कहानी।
कहूँ चाट बाटै कहू बाय मैगी,
कहूँ बा बिकत हो बिटिवन के लैगी।
कहूँ झुमका बाली कहूँ बाय काजर,
कहूँ बाटे बेचत तरोई औ गाजर।
कहूँ बड़का झूला कहू मौत कूँआ,
कहूँ साधु संतन के धूनी के धूँआ।
कहूँ पे पुलिस तो कहू चोर बाटे,
कहूँ पे केहू रोज ही ज्ञान बाटे।
कहूँ पेट खातिर केहू भीख माँगे,
केहूँ टीक चन्दन फिरू पैसा मागै।
कहूँ छुई के बछिया देवावत है मुक्ति,
केहूँ हाथ देखै कहै सुख के युक्ति।
इहा दाना दाना के खातिर बा छोरा,
गरीबी से दहला बा दिलवा ई मोरा।
उ बंटी के चाची गयी हो हेराई,
उ माइक पे बाटी हो दुखड़ा सुनाई।
चला आवा तनकी हो बंटी के चाचा,
यही हम हई यहरी वहरी न नाचा।

जहाँ बाय खेला तमाशा के मेला,
चला देखि आई हो संगम के मेला।

इहा बाय साधू औ संतन के मेला,
कहू नागा बाबा के जमघट अकेला।
सभी मिल के देखा हरी नाम गावै,
सभी कल्पवासी महीना बितावै।
चला मौनी बाबा के दर्शन करा हो,
कहू बाबा औघड़ के गोड़े परा हो।
इहा देवतन के बा पूरा बसेरा,
अगर चाहा दर्शन तो फिर चल के हेरा।
हई गंगा,जमुना,सरस्वती माई,
चला इनके गोदी में डुबकी लगाई।
मिटे दुःख के बादल कटे पाप सारा,
इन्हें पापी पुण्यात्मा सब गवारा।
गंगा के जमुना से संगम जो होइ,
वही जाय के सब जनें पाप धोइ।
बा पापी औ पुण्यात्मा के हो संगम,
वही बाय श्रद्धा औ धोखा के संगम।
जहा होय सारे बिचारन के संगम,
बड़े भाग से हो मिलै भाय संगम।

वही पे मिले हमरे बचपन के साथी,
औ पकरे रहे हाथ मा एक हाथी।
रहे साथ वनके हों द्वि ठी गदेला,
बतावै लगे हम देखावत है मेला।
तबै वहरी से एक लडक़ी देखानी,
उ देखै में एकदम लगै राजरानी।
उ आइके बोली का हो कैसे बाट्या,
बिना हमरे कैसे तू दिनवा के काटया।
तो हमहू तो मनवै में खूब सकपकाये,
उ अपनेक बताई हम अपनिक बताये।
भै छा साल शादिक हइन तीन लडका,
पढ़त बाय तिसरी म हमरे उ बड़का।
हमै खूब मानै हो हमरे बिधाता,
बन्हा बाय जबसे ज़िनगिया के नाता।
तुहू कुछ सुनावा हो कैसे कटत बा,
ज़िनगिया के कोहरा हो कैसे छटत बा।
बियहवा तो हमरो होइ गैन बाटै,
मगर अवहि जिनगी के सुख नाय बाटै।
कऊ साल से आई संगम नहाये,
यही गंगा माइ के दुखवा सुनाये।
बा जिनगी में हमरे अभी एक चाहत,
मिलै नौकरी तो मिलै तनकी राहत।
अभै बाटै खर्चा खुदै के हो जादा,
तबै हम बनत न हइ अबही दादा।

जहाँ बाय खेला तमाशा के मेला,
चला देखि आई हो संगम के मेला।

नहाई के निकरे चली देखै मेला,
कहू पै जिलेबी कहू खाय केला।
कहू तीस रुपया में कुआ झकावै,
तो हरिया भी मेहरी का झलुवा झुलावै।
यही बीस रुपया म पाड़े ठगाने,
उ गुप्ता जी अब पोस्टर पे लुभाने।
चला भाय यादव चला देखि आई,
कहा साल पहिले ई मौका हो आई।
देखावत बा लड़क्या फ्री में जो खेला,
न निकरै हो अब वकरे खातिर अधेला।
इहा भी चकाचौध में सब हेराने,
नहातै के दादा जी चप्पल भुलाने।
इ यतने के नाही हो वतने के दै दा,
न हमरो न तोहरो यतनही के दै दा।
कहू एक दामे के लागा बा ठेला,
खरिदै से ज्यादा देखावै के खेला।
हमू से यही एक नागा भेटाये,
औ कैके बड़ाई उ लागे पटाये।
तबै भाय हमहू उहा से हो भागे,
औ बाबा के गोड़े से जल्दी से लागे।

जहा बाय खेला तमाशा के मेला
चला देख आई हो संगम के मेला

तू यहकी न जाया तू वाहिकी न आया,
सुना सीधे जाया न मुडिके तू आया।
सुना भाय लाइन से लंगर म आया,
इहा खाय के उहवा पतरी बहाया।
विकत बाय चूरन कहू बाय सीटी,
केहू मारै धक्का केहू मारै सीटी।
चलत है केहू भाय धुरिया ओसाये,
औ चाहिया के जैसे हो पानी बिकाये।
भइन लड़के बेहबल औ जिव वनके ऊबे,
चला भाय जल्दी हे दूबे हे चौबे।
बहुत थक गैन भाय जल्दी से भागा,
हई भाय हम काल रतियै कै जागा।
तनी देखा मिल जाय हो तनकी पानी,
तो हमहू ई जियरा म जियरा का जानी।
हे दादा! तू हमहू के कान्हे बिठावा,
हे मालिक!तनी हमरो झोरा उठावा।
बड़ा भनभनावै भये मालगाड़ी,
चलै दादा आगे औ लड़के पिछाड़ी।
सने धूर से फिर घमाये-घमाये,
ई संगम के मेला बहुत याद आये।।

जहाँ बाय खेला तमाशा के मेला,
चला देखि आई हो संगम के मेला।