भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूब-दूब पर सीत / रामकृष्ण
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:27, 3 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=संझा-व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चन्नन-चन्नन मन के अँगना
तन बिजुरी के गीत है।
आस पिआसल पनघट-पनघट
साँस उगल बारी-झारी
अनबुझ बात कते हिरदा के
उकसावे पारी-पारी।
आँख-पाँख पर मूरत कोई
साँस-साँस मन मीत हे॥
नेह मनिरवा मानर झूमे
अनके, थिरके मन-हिरना,
सुधिआ सोझ इँजोरे नाचे
मातल सगरे बन तिसना।
परस-परस खनके कर-कँगना
अँजुरी भरल पिरीत हे॥
फुनगी-फुनगी फुलव विहँसे
रोम-रोम फागुन-फागुन।
डहुँगी-डहुँगी कोइल गावे
द्वार-द्वार पाहुन-पाहुन॥
बंधन-बंधन में पँचबजना
दूब-दूब पर सीत हे॥