मेंहदी के साँस / रामकृष्ण
कइसन हवा बहल अनगुत्ते से असराएल फागुन में।
माटी के कन-कन में बासल वास समाएल फागुन में॥
गदराएल झँगरी मनझुमरी, मटर, खेसारी, मसुरी के।
सरसो के सौंसे तन अबटन, मन पिअराएल फागुन में॥
साँस-साँस में बरे गुदगुदी, आँख मतौनी के पाती।
कने-कने खुदबुदी चिरइआँ हे अगराएल फागुन में॥
छने-छने बसुली के हिरदा, गा-गा फाग जगावित हे।
पोरे-पोर ढाक के देहे अगिन फुलाएल फागुन में॥
अउरी-बउरी, कानाफूसी करे भउरवा आपुस में।
अनजानल, चीन्हल सिनेह के नाम धराएल फागुन में॥
असरा में ठुकमुक पिपनी, अगुआनी में खरके पिपरी।
अँगना-अँगना कउआ उचरे नेअरा आएल फागुन में॥
महुआ के मातल बतास में पाहुन के सनेस बोले॥
मान-मनौती के कनसबदा फिन अँखुआएल फागुन में॥
राहे-बाटे बँटा रहल हे बैना फाग-ठिठोली के।
कठकरेज-करजनिओ में रँग-रीत लजाएल फागुन में॥
आवऽ चलऽ सभे मिल बाँटऽ नेह मिठाई मनमा के।
टोला-टाटी से बतिआलऽ ई बउराएल फागुन में॥