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कहने लगे अब वीर सैनिक / मनोज मानव

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कहने लगे अब वीर सैनिक देश की सरकार से।
हम नित्य पत्थर क्यों सहें मत रोकिये अब वार से।

हम हाथ में हथियार लेकर खा रहे नित गालियाँ,
मरना भला लगता हमें अब नित्य की इस हार से।

जब खा रही झटके बड़े तब हाथ में पतवार ले,
तुम डूबती इस नाव को कर पार दो मझधार से।

अब हाथ पत्थर ले जिसे लगने लगा वह शेर है,
वह फेंक पत्थर आज जीवित देश के उपकार से।

बढ़ने लगा नित रोग है इस देश में अब द्रोह का,
यह रोग हो बस ठीक केवल मौत के उपचार से।

नित हाल देख जवान का यह बात मानव पूछता,
अब शेर वंचित क्यों रहें इस देश में अधिकार से।

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आधार छन्द-मुनिशेखर (20 वर्णिक)
सुगम मापनी-ललगालगा ललगालगा-ललगालगा ललगालगा
पारम्परिक सूत्र-स ज-ज भ र स ल ग