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चम्बा की धूप / कुमार विकल
Kavita Kosh से
ठहरो भाई,
धूप अभी आयेगी
इतने आतुर क्यों हो
आख़िर यह चम्बा की धूप है—
एक पहाड़ी गाय—
आराम से आयेगी.
यहीं कहीं चौग़ान में घास चरेगी
गद्दी महिलाओं के संग सुस्तायेगी
किलकारी भरते बच्चों के संग खेलेगी
रावी के पानी में तिर जायेगी.
और खेल कूद के बाद
यह सूरज की भूखी बिटिया
आटे के पेड़े लेने को
हर घर का चूल्हा —चौखट चूमेगी.
और अचानक थककर
दूध बेचकर लौट रहे
गुज्जर— परिवारों के संग,
अपनी छोटी —सी पीठ पर
अँधेरे का बोझ उठाये,
उधर—
जिधर से उतरी थी—
चढ़ जायेगी—
यह चम्बा की धूप—
पहाड़ी गाय.