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देश के पहरूआ / उमेश बहादुरपुरी

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देश के पहरूआ खो देलकै ईमान, धेआन दीहा बाबाजी।
हे तोहरे पर है हिंदुस्तान, धेआन दीहा बाबाजी।।
बन गेलै ई देश अब तो लूट के खजाना।
हो रहलै हें घोटला अब एहाँ पर रोजाना।
देश के पहरूआ हो गेलै बेइमान, धेआन दीहा बाबाजी।
छल आउर कपट के चहूँओर हे बसेरा।
हे हर-तरफ अँधरिया की अब हौतै न´् सबेरा।
देश के पहरूआ न´् रहलै इनसान, धेआन दीहा बाबाजी।
लूट रहल हें लाज आझ फिन से इहाँ सीता के।
घट गेलै मूल्य अब रामायण अउर गीता के।
देश के पहरूआ हो गेलै शैतान, धेआन दीहा बाबाजी।
बस तोहीं ले सकऽ हऽ अब ओकरा से पंगा।
ऊ बइमान सब कराबे हिंदु-मुस्लिम में दंगा।
देश के पहरूआ खुद के बुझऽ हे सेआन, धेआन दीहा बाबाजी।
रोबऽ हे ई धरती रोबऽ हे मइया भारती।
देखऽ बइमान के उतारऽ हे सब आरती।
देश के पहरूआ खुद के बुझऽ हे सुलतान, धेआन दीहा बाबाजी।