भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बजार / उमेश बहादुरपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:20, 11 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ प्यार हे, कउन यार हे, बोलऽ कहाँ बहार हे?
मत फुसलाबऽ हमरा तूँ ई दुनियाँ एक बजार हे।।
पिरीत लगइलूँ तब हम जानलूँ, हे कइसन ई दुनियाँ?
सूरत भोली-भाली हे अंदर से सभे निगुनियाँ।
ऊपर-ऊपर प्यार जताबे अंदर से व्यापार हे।। मत ...
पहिल नजर में आँख मिलइलन दिल के ऊ सहलइलन।
सबके सामने हाँथ पकड़ के प्यार के राह देखइलन।
धोखा खइलूँ प्यार में हम तब जानलुँ की संसार हे? मत ....
कहलन हल तोरे संग जिअम तोरे संग हम मरम।
सातो जनम में रूप बदल के प्यार तोरा से करम।
हमरा आझ पता चल गेलै कइसन उनखर इकरार हे? मत ....
देवी समझ के पुजलुँ हल जब असली रूप हम देखहुँ।
शरम से आँख लजा गेल हम्मर अप्पन माथा ठोकलुँ।
पकड़ के हाँथ झटकलन तब जानलुँ की हम्मर यार हे? मत ....
चाहे तनहा जीअइ सबदिन, तनहा चाहे मरिअइ।
ना बाबा ना बाबा अब हम प्यार न ऐसन करबइ।
साड़ी जइसन जेयार बदल दे न´् ओक्कर इंतजार हे।। मत ....
जिंदा लाश बना के छोड़लन याद में उनखर जीअ ही।
मयखाना से हो गेल नाता अब जिए ले पीअ ही।।
उजड़ गेल हे हम्मर दुनियाँ पर उनखर गुलजार हे।। मत ....