भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न यों बाँसुरी तुम बजाया करो / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:24, 11 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> न यूँ ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न यूँ बाँसुरी तुम बजाया करो।
न यूँ रात आधी बुलाया करो॥

कन्हैया मैं वृषभानु की नंदिनी
न धीरज मेरा आजमाया करो॥

कहेगा जमाना हमें क्या न क्या
न बदनामियों को बुलाया करो॥

तुम्हारे लिए देह घर त्याग दूँ
मगर यूँ न मुझको सताया करो॥

अगर रूठ जाए तेरी राधिका
उसे प्यार से तुम मनाया करो॥

बनूँ बाँसुरी मैं अधर से लगा
मुझे रात दिन तुम बजाया करो॥

तुम्हारी है राधा हुई बावरी
न दुनिया में उसको लजाया करो॥