भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
से लाले लाल हो / उमेश बहादुरपुरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:28, 13 मार्च 2019 का अवतरण
ललकी चुनरिया ओढ़के अइती महरनियाँ,
अइती महरनियाँ से लाले लाल हो,
जने डालऽ ही नजरिया ओने लाले-लाल हो
ललकी...
जहमा जहमा जाही भइया मनमा नाहीं लागे
मइया के सूरतिया हे अँखिया के आगे
मनमा कहऽ हे मोरा मनमा कहऽ हे
मइया के डगरिया हे लाले-लाल हो
जने...
रतिया में सूतला पर आबऽ हे सपनमाँ
हमरा तूँ दे जा माई आके दरसनमाँ
हमरा लागे भइया मोरा हमरा लागे भइया मोरा
मइया के अटरिया हे लाले-लाल हो
जने....
कहिओ नञ् छोड़बइ माई तोहरो पूजनमा
तोहरा रिझाई लेबइ गाई के भजनमा
ऐसन लागे भइया मोरा ऐसन लागे भइया मोरा
मइया के नगरिया है लाले-लाल हो
जने....