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अभीष्ट / महेन्द्र भटनागर
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जीवन-उपवन में
मृत्यु सर्पिणी का
अस्तित्व न हो,
मृत्यु भीत से आतंकित
मानव-व्यक्तित्व न हो !
हर मानव
भोगे जीवन
संदेह रहित,
हो हर पल उसका
मधुरित सिंचित !
जीवन - धर्मी
जीवन से खेले,
भरपूर जिये जीवन
हर सुख की बाँहें
बाँहों में ले ले !