भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मगहिया ही हम / उमेश बहादुरपुरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 14 मार्च 2019 का अवतरण
मगहिया ही हम मगही बोलबे करम
काहे के लाज भइया काहे के शरम
सुनबइ मगही बोलबइ मगही
पढ़बइ मगही लिखबइ मगही
इहे ईमान हमर ईहे धरम
मगहिया ....
हमरा मान चाही स्वाभिमान चाही
खाली मगधे नञ् सउँसे हिंदुस्तान चाही
तोड़ देबइ हम एक दिन सबके भरम
मगहिया ....
मनेर के लड्डू सिलाव के खाजा
चोंदी के लाय आव गाजा
सतधरवा के पानी हे गरमागरम
मगहिया ....
सजल रहे बजार सदा रहे बहार
ई बगिया में सदा कोयल करे पुकार
मगहिये बन जीयम मगहिये ले मरम
मगहिया .....