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सुधारऽ सइयाँ / उमेश बहादुरपुरी

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सुधारऽ सइयाँ अपन तूँ चलनियाँ
उतर जइतो नञ् तो तोहर पनियाँ
रोजे रोज जा हा बरबिघा बजरिया
केकरा पर लुटाबऽ हऽ अपन नजरिया
नञ् काम देतो तोरा ऊ नचनियाँ
उतर ....
सँझिया के आबऽ हऽ सइयाँ तूँ झूमते
ताकऽ हऽ एक्को बेरी नञ् हमरा घूम के
रात रात भर रोबे ई बिरहिनियाँ
उतर ....
बेच देला टीका बेच देला बाली
कर देला हमरा दुनहुँ हाँथ खाली
सइयाँ आउ बेच देला तूँ नथनियाँ
उतर ....
हमरो कहनमा मान ले सजनमाँ
तोहरे में बसल हे हमरो परनमाँ
काम देतो तोरा सबदिन ई रनियाँ
उतर .....