भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृत्यु-दर्शन / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:27, 3 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर }}...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मृत्यु:

सुनिश्चित है जब;

व्यर्थ इस क़दर

क्यों होते हो

आशंकित,

आतंकित !


मृत्यु से अरे कह दो —

‘जब चाहे आना; आये।’


इस समयावधि तो

आओ,

मिल कर नाचें-गाएँ !

नाना वाद्य बजाएँ !

तोड़ें मौन;

मृत्यु की चिन्ता

करता है कौन ?