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मांदालय / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

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मॉलाम्याइन<ref>दक्षिणी बर्मा में स्थित एक बंदरगाह</ref> के उस प्राचीन पगोडे के पास, समंदर पर एकटक निहारता है जो,
एक बर्माई लड़की है खड़ी हुई, और जानता हूँ कि वह मुझे सोचती है;
कि ताड़ के पेड़ों में चलती हैं हवाएँ, और मंदिर की घंटियाँ―वे कहती हैं:
"तू लौट आ, ओ अंग्रेज़ सिपाही, तू लौट आ मांदालय!"
तू लौट आ मांदालय<ref>बर्मा(म्यांमार) का दूसरा सबसे बड़ा शहर</ref>,
जहाँ पड़ा है पुराने जंगी जहाज़ों का बेड़ा:
क्या तुम्हें नहीं सुनाई देते उनके चप्पू छपछपाते हुए
रंगून से मांदालय तक?
उस मांदालय जाने वाली सड़क पर,
जहाँ खेलती हैं उड़ने वाली मछलियाँ,
और उगती है भोर मानो
खाड़ी के पार चीन से आती हों ठंडी हवाएँ!

पीला था उसका लहँगा, और उसकी छोटी सी टोपी थी हरी,
और उसका नाम था सुपि-यै-लत<ref>बर्मा के आख़िरी राजा 'थीबा मिन' की रानी</ref>– जो 'थीबा' की रानी का था बिल्कुल वही,
और मैंने उसे पहली दफ़ा देखा था एक बड़े से सफ़ेद सिगार का कश लेते हुए,
और व्यर्थ करते हुए नम्र चुम्बन किसी मूर्ति के पाँव पर:
वो मूर्ति मिट्टी की बनी―
जिसे वे कहते थे महान भगवान बुद्ध―
बहुत वह मूर्तियों का ख़याल करती थी जहाँ रहती वह जब मैं उसे चूमता!
उस मांदालय जाने वाली सड़क पर..

जब धान के खेतों पर छाता था कुहासा और वह सूरज डूबता था आहिस्ता-आहिस्ता
वह उठाती अपना छोटा सा बैंजो और गाती थी "कल्ला-लो-लो<ref>अजनबियों के अभिवादन की बर्माई अभिव्यक्ति</ref>!"
मेरे कंधे पर उसकी बाँह रखे और मेरे गाल से लगे उसके गाल
हम देखा करते थे स्टीमर, और सागवन की लकड़ियाँ लादते हाथी।
हाथी ढेर बनाते सागवन का
कीचड़ और नमी भरी उस खाड़ी में,
जहाँ सन्नाटा इतना भारी होता कि बोलने में लगभग डर लगता!
उस मांदालय जाने वाली सड़क पर..

पर वह सब पड़ा है मेरे पीछे – बहुत पहले और बहुत दूर
और नहीं हैं कोई बसें जाने के लिए इंग्लैंड के इस तट से मांदालय;
और यहाँ लंदन में मैं सीख रहा हूँ जो एक दस साल ड्यूटी किया सैनिक कहता है:
"अगर तुमने सुना है बुलाते हुए पूरब को, तुम कभी किसी और चीज़ पर ध्यान नहीं दोगे."
ना! तुम किसी भी अन्य चीज़ को नहीं दोगे तवज्जो
बल्कि उन्हें, मसाले-लहसुन की सुगंधों को,
और उन सूर्य की किरणों और उन ताड़ के पेड़ों और उन मंदिर की बजती घंटियों को;
उस मांदालय जाने वाली सड़क पर...

मैं थक गया हूँ इन कंकड़ी रास्ते के पत्थरों पर बर्बाद करते पादुकायें
और इंग्लैंड की फूटती बूंदा-बांदी मेरी हड्डियों में जनती है ज्वर;
भले ही मैं पचास दासियों के साथ टहल लूँ चेल्सी से जाता उस स्ट्रैंड राजमार्ग पर
और वे बहुत बातें करें हैं, प्यार के बारे में, पर क्या समझें हैं वे?
मांसल मुखड़ा और मलिन हाथ–
हे विधाता, क्या समझें वे?
मेरे पास इन सबसे कहीं सुंदर और प्यारी एक युवती है यहाँ से कहीं सुंदर और कहीं हरित एक देश में!
उस मांदालय जाने वाली सड़क पर..

भेज दो मुझे कहीं स्वेज़ के पूरब, जहाँ सबसे अच्छा है सबसे बुरा,
जहाँ नहीं हैं कोई 'टेन कमांडमेंट्स'<ref>ईसाई परंपरा में ईश्वर द्वारा दी गयी जीवन की आचार-संहिता</ref> नाम की चीज़ और एक आदमी उभाड़ सकता है अपनी प्यास;
कि बुला रही हैं मंदिर की घंटियाँ, और वहीं जाना है मुझे
मॉलाम्याइन के उस प्राचीन पगोडे<ref>बौद्ध मंदिर</ref> के पास, समंदर पर आलस से निहारता है जो;
उस मांदालय जाने वाली सड़क पर,
जहाँ पड़ा है पुराने जंगी जहाज़ों का बेड़ा,
उन छज्जों के नीचे पड़े हमारे बीमार जब हम जाते थे मांदालय!
ओ मांदालय जाने वाली सड़क,
जहाँ खेलती हैं उड़ने वाली मछलियाँ,
और उगती है भोर मानो
खाड़ी के पार चीन से आती हों ठंडी हवाएँ!