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हम और वे / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

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पापा, मम्मी और मैं
और हुए बहन और बुआ
सारे हमारी तरह के लोग हैं 'हम'
और उसके अलावा सब हैं 'वे'
और 'वे' रहते हैं सागर पार
जबकि हम रहते हैं इसी राह पर
लेकिन क्या आप मानेंगे?-
वे 'हम' को देखते हैं
तो बस कि "होंगे कोई लोग 'वे'!"

हम सूअर और गाय का माँस खाते हैं
गो-शृंग से बने मूठ वाले चाकुओं से,
वे जो भकोसते हैं अपने भात पत्ते से
डरे हुए हैं अपनी ज़िन्दगी के बारे में
और वे जो एक पेड़ पर रहते हैं
कीड़ों और कीचड़ की दावत करते हैं
(क्या यह निंदात्मक नहीं हैं?)कि वे 'हम' को देखते है
कि "होंगे कोई उचाट से लोग 'वे'!"

हम बंदूकों से पंक्षी मारते हैं
वे भालों से घोंपते हैं शेर
वे वस्त्र से हीन रहते हैं पूरे
हम अपने कान तक ढँकते हैं
वे अपने दोस्तों संग चाय पीना पसंद करते हैं
हमें अपने दोस्तों को घर ठहराना पसंद है

और उस सब के बावज़ूद,
वे 'हम' को देखते हैं
कि "होंगे कोई निपट अज्ञानी लोग 'वे'!"

हम रसोई में पकाये खाने खाते हैं
हमारे पास दरवाजे हैं जिसमें सिटकिनी होती है
वे दूध या खून पीते हैं
खुले हुए छप्पर तले
हम फ़ीस देते हैं डॉक्टरों को
उनके पास जादूगर हैं बख़्शीश देने को
और( ढीठ काफ़िर कहीं के!) वे 'हम' को देखते हैं
कि "हैं बिलकुल अतर्कसंगत लोग 'वे'!"

सारे अच्छे लोग सहमत होते हैं
और सारे अच्छे लोग कहते हैं
सारे अच्छे लोग, हमारी तरह के, हैं 'हम'
और बाकी सभी हैं 'वे'

लेकिन अगर आप सागर पार जायेंगे,
इस रास्ते के पार जाने के बजाय,
आप पायेंगे (सोचिये ज़रा!) 'हम' को ख़ुद देखते हुए
कि बस "होंगे कोई लोग 'वे'!"