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अन्तर / महेन्द्र भटनागर
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आपने याद किया
आभार !
मीठा दर्द दिया
स्वीकार !
कितना अद्भुत है संयोग
कि अन्तिम विदा
अरे ! ओ प्रेम प्रथम !
आये
ओझल होती राह पर,
लिए चाह —
जो कभी पूरी होनी नहीं,
कभी वास्तव स्थूल छुअन से
सह-अनुभूत हमारी
यह दूरी होनी नहीं !
जाता हूँ —
याद लिए जाता हूँ,
दर्द लिए जाता हूँ !