भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोहें गहना ना गढ़ावा / बोली बानी / जगदीश पीयूष

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:21, 18 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=जगदीश पीयूष |अनुवादक= |संग्रह=बोली बान...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKRachna
|रचनाकार=जगदीश पीयूष
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
}}




गोरी गावे कजरी

घिरि आई बदरी



गावे ग्वाल बाल कनवा उटेर बिरहा

चुवे बुढ़ऊ क घर गिरि जाय मड़हा



घूम घूम बदरा

झूम झूम बदरा



गिरै पनिया पनारा होइ जाय गड़हा

चुवे बुढ़ऊ क घर गिरि जाय मड़हा



धार धार बदरा

जइसे गिरै मुसरा



भरे खेतवा कियारी उतिराय बरहा

चुवे बुढ़ऊ क घर गिरि जाय मड़हा


</poem>