भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक थका सैरा : नई दिल्ली / पंकज सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 5 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज सिंह |संग्रह=आहटें आसपास / पंकज सिंह }} वन्दना मिश्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वन्दना मिश्रा बुख़ार में भी दफ़्तर जा रही है

क्योंकि उसकी सारी छुट्टियाँ ख़त्म हो चुकी हैं

कभी-कभी वह

अपनी माँ और पिता के बारे में

सप्रू हाउस के लान पर बैठी सोचती है

रविवारों को

और आँखें पोंछ कर श्रीराम कला केन्द्र चली जाती है


स्मृतियों में क्या रहता है देर तक

अमजद अली खाँ का सरोद

या सड़क दुर्घटनाएँ और हड़बड़ाती हुई बसें


मैं उस पेड़-सा खड़ा रहता हूँ देर तक

मंडी हाउस के गोल चक्कर पर

जिसके पत्तों से टपकता रहता है अदृश्य हो चुका

पिछली बारिशों का पानी


किसी फ़ौजी जूते-सी

समय की निस्संग अनंतता में

बहती जा रही है नई दिल्ली


(रचनाकाल : 1979)