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अकेले हैं (माहिया) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1 हम बहुत अकेले हैं क़िस्मत के हाथों उजड़े हुए मेले हैं। 2 साथ रहें बेगाने शातिर दुनिया को कैसे हम पहचाने । 3 हम किसकी बात कहें कब था चैन मिला हरदम आघात मिले। 1 तुम चन्दा अम्बर के मैं केवल तारा चाहूँगा जी भरके। 2 तुम केवल मेरे हो साँसों में खुशबू बनकरके घेरे हो। 3 जग दुश्मन है माना रिश्ता यह दिल का जब तक साँस निभाना। 4 तुझको उजियार मिले बदले में मुझको चाहे अँधियार मिले। 5 तुम सागर हो मेरे बूँद तुम्हारी हूँ तुझसे ही लूँ फेरे।