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ताक़त / संजय कुंदन

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ताक़त अब और ताक़तवर होती जा रही थी
अब वे दिन गए जब एक नंगा फकीर दुत्कार देता था
एक विजेता को
अब विजेता सन्तों की टोली लेकर साथ चलता था
जो उसकी जय-जयकार करती रहती थी,
विजेता ख़ुद अपने को साधक बताया करता था

अब भूख की ताक़त से उसे झुकाना मुश्किल था
उसका उपवास अकसर मुख्य ख़बर बना करता था
अब त्याग की शक्ति से उसे डराना कठिन था
उसका दावा था
अपना गाहर्स्थ्य सुख छोड़ दिया उसने मानवता की सेवा में


कवियों को गुमान था कि वे नकार सकते हैं सत्ताधीशों को
अपनी कविताओं में उन्हें धूल चटा सकते हैं
पर अब एक तानाशाह भी कवि था
सधे हुए कवियों से कहीं ज़्यादा
बिकती थीं उसकी क़िताबें
ख्यातिप्राप्त आलोचकों ने सिद्ध किया था
उसे अपने समय का एक महत्वपूर्ण कवि
जाने-माने विद्वान अब नौकरी करते थे उसकी ।